हर बार
दिल ही तो है न संग-ओ-खिश्त दर्द से भर न आये क्यूँ ,
रोएंगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यूँ।
रोएंगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यूँ।
मिर्ज़ा असदुल्ला खां ग़ालिब
It’s my heart, no stone or brick. It’s a heart, made of flesh and blood. It’s all right to hurt so much.
Why don’t you just let me cry my heart out, a thousand times over? Why do you ask me to stop brooding, stop crying? Why do you torment me?
We
humans keep seeking happiness. We look for it everywhere, every day and every
moment. Some try to cling to it, while others keeping looking for more. Some
are fluid about their definition of happiness. They keep changing it;
and keep finding it. While there are still
others who are philosophical about its
fleeting nature. Moved by the unhappiness in the world The Buddha devised a
philosophy on reasons of malaise in our lives. He advocated detachment but still we see
a lot of us clinging strongly to that one reason for our sorrow and we treasure it in our heart. That one pain which sometimes is
paradoxically the reason of our existence. If I want to be poetic about it, I would say -
For all the things
that I have got
I like this pain a lot - A jewel in my treasure box
It
could be a betrayal, a death or a longing for someone – whatever the reason of our heartache it keeps us company for a long-long time.
हर बार सोचता हूँ, की कुछ नया लिख दूँ
थोडा सा रूमानी झूठ लिख दूँ
थोडा सा आसमानी फरेब लिख दूँ
सोचता हूँ के लिख दूँ, की रातरानी की खुशबू
बारिश के बूंदों से जब भीग जाती हैं
तब लगता है तेरा गिला बदन, मेरे रुख को - मेरे रूह छु गया हो
लिख दूँ, की यह चाँद तुझ जैसा दीखता हैं
की उसकी धुंदली खस्ता सी रौशनी, जब झाकती है बंद खिड़की के शिशोसे
तो लगता हैं की तू हैं, तू अब भी हैं कही
अनदेखे सारे मेरे सपने जैसे एक स्याही काली रात बनकर
तेरे पलको में कैद हो जातें हैं
सोचता हूँ लिख दूँ , के यह सरे सपने तुझ से शुरू और तुझी पे खत्म होतें है
पर नजाने क्यों हर बार मैं सच लिख देता हूँ
पिछलें सावन के सीलन भरे पन्नो पे, खुश्क अपना गम लिख देता हूँ
फिर जो लिखा वह बड़ा बेसुआदि लगता हैं औरो को
एक पर तेरा गम ही मेरा हैं,
यह कैसे समझाऊ इन गैरों को
नहीं लिख पाता हूँ मैं यह सरे झूठ तेरे एहसाँस के
बंद कर रखे हैं तेरे कभी होने का सच पुरानें लिबास में
उन सभोको अब भी अपने अलमारी की दायी दराज में
वैसे ही रखा हैं जैसे तुझे पसंद थे
मैं सच लिख देता हूँ हर बार, पर इंतज़ार अब भी करता हूँ
के किसी दिन तू मुझे झूठा साबित कर दे
💐💐💐
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